कुछ मिलने की चाहत क्या हैं? कुछ पाने की लालसा क्या हैं? जो लें आती है ,हमें कई रफ्तारों के बीच ।
जिस मे हमारी भी मोजूदगीं होती है।
पहले हम उस जगह को समझने के लिये समय को अपने लिये रोक लेते है फिर समझ आने के बाद उस रफ्तार में गीरजाते है।
ये क्या है? क्या ये कोई प्रणाली है या जाँच ? या फिर कोई प्रयोगनात्मक समझ है। या अपने कुछ समय को निर्धारीत कर के एक फिक्स सफ़र तय करने का अनूभव ?
क्या अनूभव ऐसा होता है ?
हमारे आस-पास क्या है ? टेडी-मेडी सपाट सतहें। उनके साथ बने कुछ कोने जो किसी न किसी से जूड़े रहते है।
ये कोने स्थिर होकर भी स्थिर नही होतें। किसी याद या ठहरे विचार को हरकत मे ले जाते हैं।
ये बहुत दूर भीं ले जाते है और आँखो के सामने एक जिवनी का विवरण भी कर जाते है।
हम अपनी याद का कोई महफूज पल ,दिन , या सफ़र में वापस किसी कोने और अपसर के दोरान जी पाते है।
जिस के साथ जिवन के आने वाले कल की सूचना मिल जाती है।
जिस को सून कर हैरानी नही होने चाहियें। क्यो के जो हो रहा हैं उसका कारण है। इस के अलावा हम भी किसी वजह या बेवजह से जूड़े होने के बाद भी हम खूद कहाँ है ये देखने की कोशिश करते है?
हम जहाँ है हम वही है और इसके साथ जो हो रहा है वो कसौटी है,परख हो सकती है।एक बनी-बनाई सिच्यूवेशन हो सकती है।
जिस में शरीर किसी उर्जा की तरह काम करता है। वो थकता है मगर फिर किसी गती या फोर्स को लेकर श्रम मे फिर से लग जाता है।
राकेश...
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