चाँद के उपर से होकर गुजरतें जैसे किसी के कदमो के निशान । उपर से निचे आते हुंये।
बल्फ चमकते है, तो लगता है कई जुगनूओ की भीड़ आ रही है। झून्ड नीचे आ गया हों। चारो तरफ हंसी और मजाकों की आवाज आती। ये महफिल किसी ओर की है। मगर हम भी दर्द को दबाने मे कामयाब हो जातें । ये चाँदनी रात नही थी खूशीयों का रेला भी नही था। जैसे हमारी तरफ चला आती कोई धूंधली छवि हो। कही जाना है ये भी भूल जाते बस याद रेहता है ,तो बस अपने रास्ते की शिनाख्त
दिनांक :25/12/2010
समय :2:00 am
रात की पार्टीयों में , श्यामो में रंगीन होती है उम्र ।जहाँ पर किस्से संगीन होते है।
जिन्दगी के लम्हे गहरें होते हैं।
कत्ले आम होते जिवन के सभी दूख । बेचैनी का पतन" हमजोली का एक बदन । दो-तीन टोलियो मे बंट जया करते जिवन के दो-चार पाल । हर टोली मे काम के बहाने इस जश्न मे डूब जाते है सब। कर महफिल मे उतरना ही कुछ ओर होता है।
राकेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें