बेताल चालीसा
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
बहार निकलना
भीड़ की कोई शल्क-सूरत नही होती वो किसी फैलेंया बिखरे घेरे के जैसी होती है।
जिवन मैं जिते हुये।
भीड़ हमे उकसाती भी है। अपनी तरफ खिचने के लिये
इसके आ-पास ही मंडराना बेहतर होता है इसमे घूस जाने पर हम उल्झानों मे फंस जाते है।
राकेश
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