दिनांक :10/2/2011
समय :2:00 am
घूम रहा रास्तों पे बनके कोई नक़्काल,
रफ्ता-रफ्ता लेकर आँखो मे निंडर मशाल
गंगन की हवाएं पुंछती सवाल
कहां चला ऐ बैरागी बेताल
कण-कण खोजा
छिप कर मौजा कर रहा बेताल
शक्ल-सूरत न कोई इसकी
ये तो मूखौटों का इक सवाल
इस की कोई परछाई नही
रोशनी इसे कभी भायी नही
सामने आ जाता शरीर को निकाल
बेताल ,बेताल ,बेताल
न रस मे न किसी के बस
न जम़ीन पे न अम्बर में
न गूण मे न अवगूण में
इसकी छाया हैं कमाल
वो है बेताल ,बेताल ,बेताल
राकेश
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