बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

बैरागी बेताल

दिनांक :10/2/2011
समय :2:00 am



घूम रहा रास्तों पे बनके कोई नक़्काल,
रफ्ता-रफ्ता लेकर आँखो मे निंडर मशाल
गंगन की हवाएं पुंछती सवाल
कहां चला ऐ बैरागी बेताल


कण-कण खोजा
छिप कर मौजा कर रहा बेताल
शक्ल-सूरत न कोई इसकी
ये तो मूखौटों का इक सवाल

इस की कोई परछाई नही
रोशनी इसे कभी भायी नही
सामने आ जाता शरीर को निकाल
बेताल ,बेताल ,बेताल


न रस मे न किसी के बस
न जम़ीन पे न अम्बर में
न गूण मे न अवगूण में
इसकी छाया हैं कमाल

वो है बेताल ,बेताल ,बेताल


राकेश

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