बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

निशान बने हुये ।

चारो तरफ फर्नीचर टूट पड़ा था, और फर्श पे चाय फेली थी। रात की जली सिगरटो के फिल्टर एस्ट्रे मे पडे थे।
पानी के ग्लास पे उगलीयो के निशान बने हुये थे।
फर्श पे कई बार चलने -फिरने के निशान ।
ऐसा लगता है यहा से कई लोग हो कर गुजरे है।
और सामने वाली खिड़की से बहार चले गये है।
ओह इसका मतलब कई लोगो ने मिल कर ये काम किया ।

दिनांक : 22/12/10
समय :4:35pm


वीरू ने अपने जेब से रूमाल ग्लास को उठा कर देखा । और बारीकी से देख कर बोला ।
“ लगता है यहां इस लेडीस ने इस ग्लास मे कुछ पिया था। मगर इस मे है क्या?
वो ग्लास को सूंघने लगा ,उसकी साथी निलम हाथ मे दस्ताने पहने उस जगह के आस-पास की चीजो के सेम्पल ले रही थी।
वीरू मूझे ये लगता है की ये मडर है।
वो बूलन्द आवाज मे बोली ।
तूम्हे नही लगता की जो लडकी सूबह सडक के चौराहे पर पड़ी मिली उसका सम्बंध इस केस से हैं।
नही शायद ऐसा नही और ऐसा होना भी नही चाहिये।
क्यो की बिना किसी सबूत गवाह के ये साबित नही होता।
वीरू ने निलोफर को इशारा किया ,जरा इन बल्ब के टुटे टूकडो को लो
कमरे मे कटी तारे है इन्हे अलग हटाओ।
कितने बजे की ये वारदात हो सकती है ।
बॉडी देख कर पता चलता है की रात से ही वो मरी पडी थी।
किसी ने उस पर ध्यान नही दिया ।
लेकिन वो-वो थी कौन ?और कहां से आई थी।
निलम सवालों की बोछार करने लगी ।
मै भी तो यही सोच रहा हुँ।




उसदिन दोनो इस बात की खोज मे थे की आखिर यहा क्या हुआ है?
अलमारी के साथ वाली दिवार पे खून के दाग अभी ज्यादा नही सूखे थे।
घडी बन्द थी ,जरा घड़ी लकार दिखाओ वीरू ने आदेश दिया ।
एड़जेस्ट फेन कम रफ्तार मे था।
घडी खौल कर देखे तो लगा की ,कोई कुछ देर पहले ही यहाँ से हो कर गया है।
कौन









राकेश

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