दिनांक :4/1/2011
समय :24:00 pm
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन को छोड़ कर गाडी कान पुर के लिये रवाना हुंई । काम्पार्टमेन्ट मे लोग बूरी तरह ठूसे हुये थें। कुछ निचे बैठे तो कुछ अपनी सीट पर।
चन्द पलों के लिये सब ने रहात भरी सांस ली उसके साथ ढ़ब्बे की शान्ती को भंग किया ।
गूफ्तगू का सिलसिला शूरू हुंआ । ट्रेन की रफतार बड़ जैसे बिजली का करंट छा गया हो।
शहर को छोड़ कर ट्रेन आगे निकल गई। अब सब वैसे नही थे जैसें कुछ देर पहलें लग रहे थे।
चेहरों का इन्तजार हैं।
सब एक तरह की वेटिंग मे हैं।
राकेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें